तुम कभी समानता की बात करती हो
तो कभी बदलाव की ...
या कभी मर्दो से कंधे से कन्धा मिलाने की ...
पर जब में कहता हूँ की आज सब्जी बाज़ार से तुम लाओ तो कह देती हो की तुम लड़के हो ..
बस में खड़े खड़े में कितना भी थक जाऊ वो कभी सीट नहीं छोडती ..
किसी थके हुए मर्द को ladies सीट में बैठा देख उसके मन में कभी दया की भावना नहीं आती और बड़े निर्ममता से उठा कर खुद बैठ जाती है..
उसमे उसे अपनी जीत का एहसास होता है मानो कोई सिहासान हासिल कर लिया हो.
नारी पथ भटक गयी है
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